त्याग तपस्या की आहुति से,
संघर्ष हमारा सफल किया,
उन्होंने हमें अपना कल देकर,
हमको आज ये पल दिया।
हमें कुछ भी अंदाजा नहीं,
क्या-क्या झेल गए वो लोग,
क्या कीमत है आजादी की,
प्राणों पर खेल गए वो लोग।
अस्मिता ताक पर रखकर,
हम देश को गंदा कर रहे,
केवल अपना हित देखकर,
कोई भी धंधा कर रहे।
वर्षगांठ है आज़ादी की,
हम तो उत्सव मना रहे,
लेकिन वीर सीमाओं पर,
साथी का शव उठा रहे।
एक दिन तो उनको याद करो,
समर्पित सारे संवाद करो,
दो अश्रु के दो स्मित के,
फूलों से जिंदाबाद करो।
तीन रंगों की ध्वजा है अपनी,
उसमें एक रंग लाल भी है,
अनगिनत लपटों में लिपटी,
तिरंगे में लिपटा लाल भी है।
प्राण लगे तो प्राण न्योछावर,
रण में जीवन को देना है,
आंच ना आए इस मिट्टी पर,
पहला प्रण हमको लेना है।